नववर्ष की मंगलकामनाएं

नूतन नवभारत को करते, नवस्वर से गुंजित वसुधा के ;
नवल वर्ष में, नवल विचारों; का प्रतिक्षण जयघोष  सुनो।
सप्त जलधि के महाद्वीप के, शासक ताज संवार रहे।
नवनभ के नवपथ के स्वामी, भारत का जयगीत बुनो।।१।।

नन्ही-सी मुस्कान बिखरकर, ऐसे अधरों पर आई‌ ;
पुष्प ओट में बांट जोहती, जैसे तितली शरमाई ।
प्रातःकाल की रवि की आभा, मुख-मण्डल पर है छाई  ;
मरुभूमि को गुलशन करने ; प्रकृति फूलों संग आई।।२।।

उल्लासित है हृदय आज फिर, नवरस का संचार हुआ है,
न जाने कितने कण से इस; टीले का निर्माण हुआ है।
प्रहरी प्राचीरों के बनकर, मिल-जुलकर अब काम करें।
फिर प्रसून अपने उपवन के ; विश्व चमन गुलजार करें।।३।।

नव मंजिल, नव पथ के साथी; नवल विचारों के कुंभ बने।
नूतन और पुरातन का संगम, संस्कृतियों का स्तंभ बने।
विजयी विश्व तिरंगा हो प्यारा , सदा शीर्ष पर लहराये।
ऐसा हो नववर्ष हमारा , हर रंग में खुशियाँ लाए।।४।।

रचनाकार- निखिल देवी शंकर वर्मा “गिरिजाशंकर”
अध्ययनरत-लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
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“नई तालीम “

भेदभाव के पाश तोड़कर, कर्मान्जलि का दीप जलाकर,
नर से नारी, नारी से नर तक, समानता फैलाती है।
बुद्धि, हृदय व तन की शिक्षा, जो मानवता सिखलाती है।
श्रम से पुष्ट महात्मा की वह; "तालीम नई" कहलाती है।।१।।

मातृभाषा में ज्ञान प्रसारे, छात्रों का व्यक्तित्व निखारे।
स्वपोषित हो हस्तशिल्प से, व्यावसायिक बन जाती है।
ग्रामोदय में भारतोदय का, जो प्रतिबिंबन कर जाती है।
श्रम से पुष्ट महात्मा की वह; "तालीम नई" कहलाती है।।२।।

स्वच्छता के मूल मंत्र में, ईश्वर का निवास बताकर।
स्वस्थ युवाओं के दल-बल से, नवभारत निर्माण करे।
तन से, मन से, आत्मा में, जो रंग नए भर जाती है।
श्रम से पुष्ट महात्मा की वह; "तालीम नई" कहलाती है।।३।।

रचनाकार- निखिल वर्मा "गिरिजाशंकर "
अध्ययनरत- लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
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🎂”जन्मदिन मुबारक”….!

“ज्ञान ज्योति‌ प्रज्ज्वलित कर तुम,
नवशिक्षा का प्रसार करो।
अन्धकार से फैले दुःख को,
विश्व- कुटुम्ब से दूर करो।।१।।

जन्मदिवस की वर्षगांठ पर,
ढ़ेरों तुम्हे बधाई हों।
मुस्कराहटों में हर पल गुज़रे,
हर रंग में खुशियां आई हों।।२।।

गुण श्रेष्ठ प्रस्फुटित हों तुम में,
नित नव ऊँचा आकाश छुओ।
हर दिवस प्रफुल्लित हो तुम से,
ऐसे ही सौ साल जियो।।३।।”

रचनाकार- निखिल देवी शंकर वर्मा “गिरिजाशंकर”
अध्ययनरत-लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
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हिन्दी – हमारा गौरव हमारी पहचान

बिखरे स्वरों को जोड़ती;वह साज़ हिन्दी है।
मेरी तुम्हारी आत्मा की,आवाज़ हिन्दी है।
कवि हृदय की;कलम-ए-तलवार हिन्दी है।
बोलियों में विश्व की,सरताज़ हिन्दी है।।१।।

सूखे मरुस्थल को‌ जो जल‌ से;सींचते बादल,
उन घटाओं से,बरसात की;एक आस हिन्दी है।
खेत श्रम से,जोतता जो;लेकर अपना एक हल,
उस कृषक के,बेचैन मन की;प्यास हिन्दी है।।२।।

शक्ति है,पूजा है,धर्म है,संकल्प है,
आस है,विश्वास है,अरदाज़ हिन्दी है।
संस्कृतियों का है उत्थान,आंदोलनों का ये विचार।
युद्ध की घोषित विजय की,जय-जयकार हिन्दी है।।३।।

कोटि सवा सौ हृदयों की,मुस्कान हिन्दी है।
यह हमारे भारत की,पहचान हिन्दी है।
ज्ञानियों का ज्ञान है,तप का प्राण हिन्दी है।
ये हमारा मान,ये अभिमान हिन्दी है।।४।।

रचनाकार- निखिल देवी शंकर वर्मा "गिरिजाशंकर"
अध्ययनरत- लखनऊ विश्वविद्यालय,लखनऊ।
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अग्निपथ

 

सत्य के पथ पर पथिक,कौन कब तक टिक सकेगा,
इसलिए मंजिल तलक,यह पथिक पैदल चलेगा।
क्या पता कुछ मीत मेरे,साथ छोड़ेंगे हमारा।
यह अकेला था सदा,यह अकेला ही लड़ेगा।।१।।

प्राण घातक शक्तियों ने,प्राण साधे हैं हमेशा।
अग्निपथ पर पाँव धरकर,दर्द को आराम होगा।
विषभरे  पात्रों के तल में,कुछ बहुत अमृत मिलेगा।
इसलिए मंजिल तलक,यह पथिक पैदल चलेगा।।२।।

मातृभूमि की पुकारें,कह रहीं विश्राम मत कर,
धैर्य तजकर ही तुम्हारे,धरा का कल्याण होगा।
अड़चनों का शैल भी,राह का राही बनेगा।
इसलिए मंजिल तलक,यह पथिक पैदल चलेगा।।३।।

रचनाकार- निखिल देवी शंकर वर्मा "गिरिजाशंकर"
अध्ययनरत- लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ।
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